Governor Program में उपेक्षा से नाराज़ पत्रकारों ने ठाना—अब नहीं देंगे प्रशासन को प्राथमिकता
Journalists angry with the neglect in the Governor's program decided that they will no longer give priority to the administration

Governor Program में उपेक्षा से नाराज़ पत्रकारों ने ठाना—अब नहीं देंगे प्रशासन को प्राथमिकता
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।शासकीय कार्यक्रमों में पत्रकारों के साथ हो रही उपेक्षा अब खुलकर सामने आ चुकी है। सारंगढ़ में आयोजित राज्यपाल के कार्यक्रम के दौरान जो घटनाएं सामने आईं, उन्होंने जिले के पत्रकारों को हिला कर रख दिया है। इस आयोजन में न सिर्फ पत्रकारों को नजरअंदाज किया गया, बल्कि उनके लिए कोई ठोस व्यवस्था तक नहीं की गई। इससे आहत होकर पत्रकारों ने अब जिला प्रशासन और जनसंपर्क विभाग की खबरों को प्राथमिकता देने से साफ इनकार कर दिया है।
पत्रकार दीपक थवाईत ने प्रशासन की लापरवाही पर खुलकर नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि—“हमेशा हर सरकारी कार्यक्रम को प्रमुखता से कवर करते हैं, लेकिन हमें ही नजरअंदाज कर दिया जाता है। न तो बैठने की व्यवस्था थी, न कवरेज के लिए कोई सुविधा। ये सरासर अपमान है।”
राज्यपाल जैसे उच्च पदाधिकारी के आगमन पर आयोजित कार्यक्रम में पत्रकारों के लिए कोई सटीक प्रबंधन न होना जिला प्रशासन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। यह सिर्फ एक बार की बात नहीं है, बल्कि पत्रकारों के साथ यह उपेक्षा लगातार देखी जा रही है।
पत्रकारों की नाराज़गी क्यों है जायज़?
पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाते हैं। वे दिन-रात खबरों की खोज में लगे रहते हैं, ताकि जनता तक सही और सटीक जानकारी पहुंचाई जा सके। जब यही पत्रकार शासकीय कार्यक्रमों में अपमानित महसूस करें, तो सवाल उठना लाजमी है—क्या प्रशासन अब लोकतंत्र के इस स्तंभ को नजरअंदाज करना शुरू कर चुका है?
जनसंपर्क विभाग भी सवालों के घेरे में
इस पूरे मामले में जनसंपर्क विभाग की भूमिका भी सवालों में घिर गई है। एक ओर यह विभाग सरकारी खबरों को प्रसारित करने में लगा है, वहीं दूसरी ओर वही पत्रकारों को सहयोग देने में असफल हो रहा है, जो इन खबरों को जनता तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
पत्रकारों ने जताई एकता, लिया बड़ा फैसला
इस अपमानजनक व्यवहार से तंग आकर सारंगढ़ के पत्रकारों ने सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया है कि वे अब से जिला प्रशासन और जनसंपर्क विभाग की खबरों को प्राथमिकता नहीं देंगे। यह कदम छोटे शहरों में पत्रकारिता के आत्मसम्मान की लड़ाई को नया मोड़ दे सकता है।
अब क्या होगा आगे?
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन इस गंभीर मुद्दे को लेकर कोई माफ़ी या सुधारात्मक कदम उठाता है, या फिर पत्रकारों की यह नाराज़गी एक बड़ी असहमति में बदल जाएगी। एक बात तय है—अब पत्रकारों ने चुप रहने का इरादा छोड़ दिया है।