क्या छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के अंत की शुरुआत हो गई? हाई कोर्ट का बड़ा बयान!

CG News:छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसले में एनआईए कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि नक्सली हमला देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने एनआईए कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपियों की अपील को खारिज कर दिया।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने नक्सली हमलों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह केवल अलग-थलग आपराधिक कृत्य नहीं हैं, बल्कि राज्य को अस्थिर करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के उद्देश्य से सुसंगठित विद्रोह का हिस्सा हैं।
अदालत ने नक्सल हमले के आरोपितों की ओर से एनआईए कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया।
एनआईए कोर्ट ने नक्सल हमले के आरोपित कवासी जोगा, दयाराम बघेल, मनीराम कोर्राम और महादेव नाग को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद एनआईए कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे हमले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
11 मार्च 2014 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 80वीं बटालियन के 30 जवान और टोंगपाल पुलिस स्टेशन के 13 पुलिसकर्मी सड़क निर्माण कार्य के लिए सुरक्षा प्रदान कर रहे थे। सुबह 10:30 बजे, ताहकवाड़ा गांव के पास सुरेंद्र, देवा, विनोद और सोनाधर के नेतृत्व में माओवादियों ने रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) पर घात लगाकर हमला किया।
इस हमले में एक नागरिक की भी मौत हो गई। माओवादियों ने शहीद जवानों से हथियार और उपकरण लूट लिए, जिनमें छह एके-47 राइफलें, एक इंसास एलएमजी और आठ इंसास राइफलें शामिल थीं।
हाई कोर्ट ने कहा कि नक्सली हमले अत्यधिक संगठित और पूर्व नियोजित होते हैं। इनके पीछे गुरिल्ला रणनीति, घात लगाकर हमला करने की योजना और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों (आइईडी) का उपयोग होता है, जो इन्हें सामान्य अपराधों से अधिक खतरनाक बनाता है।
अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, गवाहों के बयानों और बरामद हथियारों को दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त माना। अभियोजन पक्ष ने यह साबित कर दिया कि हमले की योजना बनाने वाली बैठकों में आरोपी मौजूद थे। कोर्ट ने यह भी माना कि षड्यंत्र अक्सर गुप्त रूप से रचा जाता है और प्रत्यक्ष साक्ष्य का मिलना कठिन होता है।
एनआईए ने 21 मार्च 2014 को जांच शुरू की और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया। जगदलपुर की विशेष अदालत ने सभी आरोपितों को दोषी करार दिया और हत्या, साजिश, शस्त्र अधिनियम और यूएपीए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
उच्च न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि नक्सलियों की पहचान और गिरफ्तारी करना मुश्किल है, क्योंकि वे छद्म नामों का सहारा लेते हैं और स्थानीय ग्रामीण गवाही देने से कतराते हैं, जिससे अभियोजन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी होती है।