सारंगढ़-बिलाईगढ़ में बदल रही है राजनीति की दिशा
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के मद्देनजर सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का डीडीसी क्षेत्र क्रमांक 9 सबसे ज्यादा चर्चा में है। इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है, जहां एक तरफ लोकप्रिय और जनता के दिलों में बसने वाले अरुण मालाकार चुनावी मैदान में हैं, वहीं दूसरी ओर संजय भूषण पांडे सत्ता के सहारे बाजी मारने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन पंचायत चुनावों में सत्ता नहीं, बल्कि जनता का प्यार और भरोसा ही असली ताकत होती है, और यही अरुण मालाकार की सबसे बड़ी ताकत है।
अरुण मालाकार: जनता के सच्चे सेवक
अरुण मालाकार की पहचान एक कर्मठ, जमीनी और ईमानदार नेता के रूप में है। वे पहले भी दानशरा और सालार में बीडीसी रह चुके हैं और यहां की जनता उनके काम से भली-भांति परिचित है। जनपद सदस्य रहते हुए उन्होंने गांवों के विकास, सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया। यही वजह है कि इस बार जनता फिर से उनके समर्थन में खड़ी नजर आ रही है।
इस क्षेत्र को कभी भाजपा का गढ़ माना जाता था, लेकिन अरुण मालाकार की मेहनत और कांग्रेस की रणनीति ने इसे पूरी तरह बदल दिया है। अब यहां कांग्रेस का दबदबा है, और अरुण मालाकार इसका मजबूत चेहरा बन चुके हैं।
संजय भूषण पांडे: सत्ता का सहारा, लेकिन जनता का साथ नहीं?
संजय भूषण पांडे चुनावी मैदान में जरूर हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि उनकी पकड़ जनता के बीच उतनी मजबूत नहीं है। वे प्रदेश में भाजपा सरकार होने का लाभ उठाकर चुनाव जीतने की रणनीति अपना रहे हैं, लेकिन पंचायत चुनावों में यह फॉर्मूला ज्यादा कारगर साबित नहीं होता। यहां नेता का चेहरा, उसकी लोकप्रियता और जनता के बीच उसकी छवि सबसे ज्यादा मायने रखती है।
जहां अरुण मालाकार गांव-गांव घूमकर जनता से सीधे जुड़ रहे हैं, उनकी समस्याएं सुन रहे हैं और समाधान कर रहे हैं, वहीं संजय भूषण पांडे सत्ता की ताकत दिखाकर चुनावी नैया पार करने की कोशिश में हैं। लेकिन क्या सिर्फ सत्ता का सहारा ही उन्हें जिताने के लिए काफी होगा? यह बड़ा सवाल है!
मुद्दों पर नहीं, सत्ता के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं संजय भूषण पांडे
चुनाव में जीत का सबसे बड़ा मंत्र होता है – जनता के मुद्दों को समझना और उनके लिए काम करना। अरुण मालाकार ने अपने कार्यकाल में यह साबित कर दिया कि वे केवल वादे नहीं, बल्कि जमीन पर काम भी करते हैं। लेकिन संजय भूषण पांडे के पास ऐसा कोई मजबूत मुद्दा नहीं है, जिसे वे जनता के सामने रख सकें।
यही वजह है कि इस चुनाव में जनता का झुकाव स्पष्ट रूप से अरुण मालाकार की ओर दिखाई दे रहा है। गांवों में लोग खुलकर कह रहे हैं कि हमें ऐसा नेता चाहिए, जो हमारी समस्याओं को समझे, न कि ऐसा जो केवल सत्ता के दम पर वोट मांगे।
क्या सत्ता के दम पर पलटेगा खेल?
संजय भूषण पांडे इस चुनाव में सत्ता का पूरा लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं। प्रशासनिक दबाव, धनबल और चुनावी रणनीतियां उनके पक्ष में जा सकती हैं, लेकिन क्या यह सब जनता की भावना से बड़ा हो सकता है?
गांवों में जनता के मूड को देखकर साफ कहा जा सकता है कि डीडीसी क्षेत्र क्रमांक 9 में इस बार हवा पूरी तरह से अरुण मालाकार के पक्ष में बह रही है। लोग विकास चाहते हैं, और विकास का दूसरा नाम बन चुके हैं अरुण मालाकार।
जनता का हीरो कौन?
अगर इस चुनाव को एक फिल्म माना जाए, तो इसमें अरुण मालाकार ही असली हीरो हैं, जिनका साथ जनता दे रही है और जिन पर पूरा क्षेत्र भरोसा जता रहा है। वहीं, संजय भूषण पांडे महज एक प्रतिद्वंदी की भूमिका में हैं, जो सत्ता का सहारा लेकर जीतने का सपना देख रहे हैं। लेकिन पंचायत चुनावों में जनता ही असली निर्णायक होती है, और इस बार जनता अरुण मालाकार के साथ खड़ी नजर आ रही है।
तो क्या इस चुनाव में होगा जनता की ताकत का जलवा? या सत्ता का दांव पलटेगा पासा? यह देखने के लिए सभी की निगाहें डीडीसी क्षेत्र क्रमांक 9 पर टिकी हुई हैं!