गुडेली के पत्थर खदान में हादसे के बाद मौत, न नियमों का पालन, न सूचना—क्या कहता है कानून?
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में गुडेली के एक पत्थर खदान में काम करने वाले मंगल सिदार की मौत हादसे के बाद इलाज के दौरान हो गई। लेकिन इस घटना की सूचना न तो खदान संचालक ने पुलिस को दी और न ही संबंधित विभाग को। बल्कि, परिवार को पैसे का लालच देकर मामला रफा-दफा कर देने की बात चर्चा का विषय बना हुआ है।
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक टीमरलगा निवासी मृतक मंगल सिदार उम्र करीब 41,42 वर्ष गुडेली के एक खदान संचालक के पास श्रमिक के तौर पर कार्य करता था और बीते मंगलवार को खदान में खनन कर निकाले जा रहे पत्थर को वाहनों में लोड करने का काम कर रहा था तभी अचानक खनन प्रक्रिया के दरमियान खदान का एक हिस्सा उसके ऊपर जा गिरा जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे उसके सह कर्मियों ने आनन फानन में सारंगढ़ अस्पताल पहुंचाया जहां उसकी गंभीर हालत को देख कर ड्यूटी डॉक्टर ने रायगढ़ रिफर कर दिया जहां उसकी इलाज के दौरान मृत्यु हो गई ।हालांकि हम इस बात की पुष्टि नहीं कर रहे लेकिन इस मामले की चर्चा गुड़ेली सहित टीमरलगा के ठेलो और गुमटियों में हो रही है।
यह गंभीर लापरवाही न केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करने वाला मामला भी है। आइए जानते हैं कि ऐसे मामलों में क्या नियम-कानून कहते हैं।
ले देकर हो गई सेटिंग
हमारे विश्वसनीय सूत्र बता रहे है कि मामले को दबाने के लिए खदान मालिक ने मृतक के परिजनों को भारी भरकम रुपए का लालच देकर शांत कर दिया और मंगल के मृत शरीर की अंतिम संस्कार बुधवार को कर दी गई है ताकि घटना को जितनी जल्दी हो सके दबा दी जाए और किसी को भनक तक न लगे ।
1. खदानों में हादसों की सूचना देना अनिवार्य
भारतीय खान अधिनियम, 1952 और खान नियम, 1955 के अनुसार, यदि किसी खदान में दुर्घटना होती है, तो खदान प्रबंधन को तुरंत इसकी सूचना स्थानीय पुलिस, खनन विभाग और श्रम विभाग को देनी होती है।
धारा 23 के तहत, यदि किसी श्रमिक की मौत होती है या गंभीर चोट लगती है, तो प्रबंधन को 48 घंटे के भीतर मुख्य खान निरीक्षक और राज्य सरकार को रिपोर्ट देनी होती है।
ऐसा न करने पर खदान संचालक कानूनी कार्रवाई और भारी जुर्माने का सामना कर सकता है।
2. श्रमिकों के अधिकार और मुआवजा
मंगल सिदार की मौत के बाद परिवार को पैसे का लालच देकर मामला दबाने की कोशिश की गई, लेकिन कानून के अनुसार—
श्रमिक मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत, अगर किसी श्रमिक की काम के दौरान मौत होती है, तो नियोक्ता को कानूनी रूप से उचित मुआवजा देना होता है।
ESI (Employees’ State Insurance) अधिनियम, 1948 के तहत, यदि श्रमिक बीमित था, तो उसके परिवार को बीमा क्लेम मिलना चाहिए।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304A के तहत, यदि किसी की लापरवाही से मौत होती है, तो यह अपराध माना जाएगा और 2 साल तक की सजा हो सकती है।
3. खदान संचालक पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
अगर कोई खदान संचालक हादसे की सूचना छुपाता है और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ कई धाराओं में मामला दर्ज हो सकता है—
माइनिंग एक्ट, 1952 की धारा 72C के तहत, प्रबंधन पर जुर्माना और खदान बंद करने की कार्रवाई हो सकती है।
आईपीसी धारा 201 के तहत, सबूत छिपाने और गलत जानकारी देने के लिए सजा का प्रावधान है।
लेबर लॉ वायलेशन के तहत, श्रम विभाग खदान संचालक को ब्लैकलिस्ट कर सकता है और खदान को सील करने की कार्रवाई कर सकता है।
बहरहाल मंगल सिदार की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि श्रमिकों के अधिकारों का हनन है। अगर इस मामले की जांच नहीं हुई, तो भविष्य में अन्य श्रमिकों की जान भी खतरे में पड़ सकती है। सरकार और प्रशासन को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि खदानों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। क्या प्रशासन अब इस मामले में कोई कार्रवाई करेगा, या इसे भी दबा दिया जाएगा?