Chhattisgarh

गुरु घासीदास बाबा की जयंती पर जानें उनके पूर्वजों, समाधि स्थल और मृत्यु के बारे में सब कुछ!

 

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गुरु घासीदास बाबा की जयंती

गुरु घासीदास बाबा की जयंती हर वर्ष 18 दिसंबर को बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। वे छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित संत और समाज सुधारक रहे हैं, जिन्होंने अंधविश्वास, जातिवाद, और भेदभाव के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई। गुरु घासीदास ने “सतनाम” के सिद्धांत को प्राथमिकता दी, जिसमें उन्होंने सत्य और आत्मज्ञान के महत्व पर जोर दिया।

उनके आदर्श आज भी समाज में समानता, प्रेम, और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी शिक्षाओं ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायता की है। उनकी जयंती के अवसर पर, हम उनके अमूल्य योगदान को स्मरण करते हैं और उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।

 

गुरु घासीदास की मृत्यु कैसे हुई

गुरु घासीदास बाबा के निधन के बारे में सही और प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके जीवन के संदर्भ में लिखित सामग्री काफी सीमित है। फिर भी, सामान्य मान्यता के अनुसार, उनकी मृत्यु 1850 के आस-पास हुई मानी जाती है। यह घटना राठीमाल नामक स्थान पर हुई, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में स्थित है।

कहा जाता है कि उनकी अंतिम क्षणों में उन्होंने अपने अनुयायियों को सत्य और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इसके साथ ही, वे अपने शरीर को त्याग कर स्वर्गीय लोक में समाहित हो गए। उनके अनुयायी यह मानते हैं कि गुरु घासीदास की आत्मा सदैव उनके साथ रहती है और उनकी दी गई शिक्षाएं आज भी समाज में अमूल्य हैं।

 

गुरु घासीदास बाबा के कितने पुत्र थे,

गुरु घासीदास बाबा के बारे में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, उनके तीन पुत्र थे, जिनका नामकरण इस प्रकार है:

1.गुरु बालकदास

2. गुरु नानकदास

3. गुरु रामदास

इन तीनों संतों ने गुरु घासीदास बाबा की शिक्षाओं को प्रचारित करने और समाज में आरंभ किए गए सुधार आंदोलन को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से सत्य, प्रेम और समानता का संदेश व्यापक रूप से फैलता रहा।

 

हालांकि गुरु घासीदास के जीवन और उनके परिवार के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेजों की कमी पाई जाती है, फिर भी उनके पुत्रों के योगदान को उनके अनुयायी अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। सतनाम पंथ की स्थापना और समानता का संदेश आज भी समाज में एक प्रमुख जगह रखता है।

 

गुरु घासीदास समाधि स्थल

गुरु घासीदास बाबा की समाधि स्थान राठीमाल पर स्थित है, जो छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिले में स्थित है। यह स्थल गुरु घासीदास बाबा के अनुयायियों के लिए गहरे श्रद्धा का केंद्र बन चुका है।

 

गुरु घासीदास बाबा ने अपने जीवन की आखिरी सांस यहीं ली थी, और उनके अनुयायी इस स्थल को अत्यंत धार्मिक महत्व का मानते हैं। यहाँ उनकी उपस्थिति का अनुभव आज भी किया जा सकता है। राठीमाल में स्थित उनकी समाधि पर प्रतिवर्ष श्रद्धालु विशेष अवसरों पर पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं, विशेष रूप से उनकी जयंती (18 दिसंबर) एवं अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक अवसरों पर।

 

यह स्थल न केवल गुरु घासीदास की शिक्षाओं को समर्पित है, बल्कि समाज में समानता, प्रेम और सत्य के उनके संदेशों को भी जीवित रखने का कार्य करता है।

 

गुरु घासीदास के पूर्वज

गुरु घासीदास बाबा के पूर्वजों के संबंध में जानकारी काफी सीमित है, और इस विषय पर ऐतिहासिक प्रमाण भी कम मिलते हैं। पारंपरिक ज्ञान के अनुसार, उनके पूर्वज *पारधी* जाति से संबंधित थे, जो समाज के अंतिम वर्गों में गिनी जाती है। माना जाता है कि गुरु घासीदास बाबा का जन्म एक गरीब और साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उनकी महानता और शिक्षाओं ने उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

 

गुरु घासीदास बाबा का जन्म 18वीं सदी के अंत में हुआ, और वे छत्तीसगढ़ के गौरेला (वर्तमान में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला) के एक छोटे से गांव में आए थे। उनके परिवार ने सरल जीवन जीने के उपरांत समाज में सुधार के लिए कई प्रयास किए।

 

गुरु घासीदास के पूर्वजों के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी ऐतिहासिक दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं है; फिर भी, उनके जीवन और कार्यों से स्पष्ट होता है कि वे समाज में सुधार लाने के प्रति प्रतिबद्ध थे।

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